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11 Jan 2023 · 1 min read

शिशिर का स्पर्श / (ठंड का नवगीत)

आग जूड़ी
लग रही है
हो रहा
पारा हताहत ।

हाथ सेंको,
पाँव जूड़े,
पाँव सेंको
कमर जूड़ी ।
और जो
बाकी बची
वो कोर जूड़ी,
कसर जूड़ी ।

धुंध है
पाखंड की
विश्वास का
तारा हताहत ।

शिशिर का
आतंक गहरा,
सूर्य को ढक
रहा कुहरा ।
कपकपी ऐसी
कि जिससे
सिकुड़ हर तन
हुआ दुहरा ।

प्रकृति का
बाह्य,अंतर
आवरण
सारा हताहत ।

शीत लहरों
ने बिगाड़ा
आदमी का
खेल सारा ।
पनपने के
पूर्व फसलें
लीलता है
घटा-पारा ।

ठिठुरती
जीवन-नदी
की हो रही
धारा हताहत ।

आग जूड़ी
लग रही है
हो रहा
पारा हताहत ।
०००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली),सागर
मध्यप्रदेश ।
मो.- 8463884927

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