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26 Dec 2022 · 1 min read

दिसंबर

माह दिसंबर बदन में जगने लगे है सिहूरन कुछ
बर्फीली हवाओं से लगने लगे हैं ठिठुरन कुछ

धीरे धीरे बदन पर चढने लगा है वसन का तह
जेसे जालिम आज़ादी से होने लगे हैं बिछुड़न कुछ

धीरे धीरे चढ़ी दुपहरी जैसे रात अमावस की
बादल का ओंट लिए सूरज चांद लगे है पूरनम कुछ

गुलाबी होठों पे तेरे चमकीली ईक ओंस की बूँद
जैसे मेरे ख्वाबों वाली तू लगे हैं सिमरन कुछ

कंबल ओढ़ रजाई में जमी जवानी बूढ़ों सी
सन सन बर्फ़ीली सांसे लगे फ़राओ मिसरन कुछ ।।
बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश

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