रवि प्रकाश की दो कुंडलियाँ
रवि प्रकाश की दो कुंडलियाँ
(1)
देह का अंत जरूरी (कुंडलिया)
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मुश्किल होता है सदा , ढोना जर्जर देह
जब ढोना मुश्किल लगे ,करिए तनिक न नेह
करिए तनिक न नेह , देह का अंत जरूरी
दुखद देह का दाह , किंतु होती मजबूरी
कहते रवि कविराय ,सभी का रोता है दिल
अपने जाते दूर , देखना होता मुश्किल
(2)
जीवन के सौ साल (कुंडलिया)
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जीने को सबको मिले ,जीवन के सौ साल
फिर आकर खाता रहा ,निर्मम पेटू काल
निर्मम पेटू काल , सुखद दो दिवस कहानी
ढल जाती फिर शाम ,छोड़ बचपना-जवानी
कहते रवि कविराय , घूँट विष के हैं पीने
सौ – सौ लगते रोग , बुढ़ापा कब दे जीने
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451