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19 Nov 2022 · 1 min read

'प्रेम' ( देव घनाक्षरी)

प्रेम की दीवानी राधा,
प्रेम की दीवानी मीरा,
दोनों ही पुकार रही,
हे! गिरिधर-गिरिधर।

कृष्ण तो हैं राधा के तो,
मीरा के गोपाल बाल,
राधे बसी श्याम मन,
मीरा को भाये नटवर।

प्रेम रस धार बहे,
राधे श्याम मीरा मन,
तरसे हैं गोपी ग्वाल ,
चितवन को चक्रधर।

नंद के आँखों के तारे,
यशोमती माँ के प्यारे,
गोगुल के वे दुलारे,
मुरलिया धरे अधर ।

स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी

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