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3 Nov 2022 · 1 min read

दिव्यांग भविष्य की नींव

कितना आसान है
तुम्हारे लिये ….
नव-रसों में भीगे भावों को
झकझोर कर …
अपनी पैनी निगाहों से टटोलकर
उधड़ने की प्रक्रिया से
गुजरने वाली स्त्री पर
कुछ जुमले उछाल देना ….

कितना सहज है
टूटी हुई स्त्री का
बार-बार शब्दों से
अपमान करना ….
उसके स्त्रीत्व को कोंचना …..

काश! तुम समझ पाते कि
हर लताड़े गये दिन पर
हावी होता है ..
एक घिसटती हुई आत्मा का
रिसता हुआ जख्म !
जो..
जाने कितनी पीढ़ियों को
बना देता है …
मानसिक रूप से अपंग!

रश्मि लहर
लखनऊ उत्तर प्रदेश

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