Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
14 Oct 2022 · 1 min read

मुक्तक

मै दिल के टुकड़ों को, लिए हाथो में फिरा हूं
ठोकर ये ख़ा के दुनिया की नज़रों से गिरा हूं
क्यों तू ना समझ पाया ये जब गिर गया था मै
मर करके_ जिया हूं सनम “जी” करके मरा हू

बिन बात_ ही बन जाए, सौ _बात सनम से
खुद जात _से हूं मै अपनी परेशान कसम से
ये दुनिया बडी जालिम है समझती नहीं हमको
कई _रात गुजारे मैने मय_खानों में गम से
✍️कृष्णकांत गुर्जर

Loading...