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14 Oct 2022 · 1 min read

नदी सा बहक जाऊं

****** नदी सा बहक जाऊं ******
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नदी सा बहक मैं जाऊं तेरी राहों में,
लहरों सा मचल जाऊं तेरी बाँहों में।

उड़ता-उड़ता गिर जाऊं तेरी गोदी में,
बन पखेरू चहक जाऊं फिजाओं में।

लाल सुर्ख होठों की बन जाऊं लाली,
काजल बनकर बस जाऊं निग़ाहों में।

मदिरा सा चढ़ जाए नशा जवानी का,
गजराज सा मस्त हो जाऊं बहारों में।

श्यामल रात में बन जाऊं जुगनू सा,
चाँद सा चमकता रहैं नभ में तारों में।

मनसीरत रजत सा वर्ण मैं खो जाऊं,
तन-मन मे बस जाऊं तेज हवाओं में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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