Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Oct 2022 · 4 min read

बाहों में तेरे

बाहों में तेरे

इश्क अनमोल था उन दोनों का। दोनों के बीच की केमिस्ट्री भी बहुत अच्छी थी। जीने मरने की कसमें खाया करते थे वो एक दूसरे के प्यार में। दोनों को देख कर ऐसा लगता था जैसे एक दूसरे के लिए ही बने हो। एक जिस्म तो दूसरा जान हो जैसे।

यह कहानी है उन दो नए प्रेमी युगल की, जिन्होंने अभी-अभी प्रेम की दुनिया में कदम रखा था। उनके मन में प्रेम अंकुर फूट रहे थे। इश्क की दुनिया में एक दूसरे के लिए पंख थे वो। नाम भी बहुत प्यारा था उनका – कमल और पंखुड़ी।

दुनिया वालों से छुप छुप कर मिलते थे – कभी मेले में, कभी हाट में तो कभी आम के बाग में। इश्क में छुप छुप कर मिलने का भी अपना अलग ही मजा है। जब भी मिलते तो एक दूसरे के चेहरे खिल जाते। उस पल दो पल के साथ में उन्हें लगता था जैसे पूरी दुनिया ही मिल गई हो, पूरा जीवन जी लिया हो जैसे।

पंखुड़ी को हमेशा शिकायत रहती थी कि कभी बाग में बुलाते हो, कभी हाट में मिलते हो तो कभी कहीं और। आखिर कब हम एक होंगे। ऐसी जगह बताओ ना कमल, जहाँ मिलने के बाद कहीं और जाने की जरूरत ही ना हो। तुम मुझसे वहीं आकर मिलो।
कमल हर बार उसकी बात को हँस कर टाल दिया करता था। बोलता था – मेरी जगह तो तुम्हारे दिल में ही है। आखिर पंखुड़ी के बिना कमल की औकात ही क्या!
पंखुड़ी बोल पड़ती – दिल में तो तुम मेरे मरने के बाद भी रहोगे। मजाक मत करो। सच में बताओ ना।
कमल बोलता – अच्छा बता दूँगा बाबा। कुछ वक्त तो दो। अभी इस पल का तो आनंद उठा लो। पंखुड़ी को हर बार किसी तरह मना ही लेता था।

दिन पर दिन उनका इश्क परवान चढ़ता गया। गली मोहल्ले में चर्चे होने लगे। देखते ही देखते वो दुनिया वालों की नजरों में खटकने लगे। मोहल्ले के कुछ आवारा लड़कों की नजर बहुत दिनों से पंखुड़ी पर थी। वो उसे पाने की फिराक में लगे रहते थे। इसी बीच एक दिन उन्हें मौका मिल गया। गर्मी के दिनों में दोपहरी का वक्त था। आम के पेड़ पर मंजर लगे हुए थे। पंखुड़ी ने कमल को आज फिर से आम के बाग में बुलाया था। बाग में उसके पहुँचते ही उसके पैरों के पायल की झंकार से पूरा वातावरण गूँज उठा। मिलन के उत्साह में वह जरा जल्दी ही पहुँच गई थी क्योंकि उससे विरह की वेदना सही नहीं जा रही थी। वह आम के एक मोटे पेड़ के पास जाकर उससे टिक कर खड़ी हो गई और कमल के आने की प्रतीक्षा करने लगी।
सहसा किसी ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया। पीछे मुड़कर जब वो देखी तो वह गाँव का छँटा बदमाश भूरा था। उसने अपने आप को छुड़ाना चाहा, लेकिन भूरा की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो अपने आपको छुड़ा ना सकी। उसके मुंह से चीख निकल पड़ी – बचाओ कमल! कहाँ हो कमल। आओ मुझे बचा लो। तब तक भूरा के तीन चार दोस्त भी वहाँ छुप कर बैठे थे जो मौका पाकर सामने आ गये।
पंखुड़ी बहुत डर चुकी थी। बार-बार कमल को आवाज लगाए जा रही थी। सभी उसकी तरफ हँसते हुए आगे बढ़ रहे थे। भूरा ने कहा – कोई नहीं आने वाला तुझे बचाने के लिए। किसका इंतजार कर रही है? आज हम से ही काम चला ले। इतना कहकर वो फिर से ठठाकर हँस पड़ा। पंखुड़ी बोली – मेरा कमल आएगा। एक-एक से बदला लेगा वह।

इससे पहले कि वह सभी उसके साथ कुछ कर पाते, कमल आ पहुँचा। एक पेड़ की टहनी तोड़कर उन सभी पर टूट पड़ा। पंखुड़ी भी उसका साथ देने लगी। लेकिन चार – पाँच लोगों के आगे वे कब तक टिक पाते। दोनों बुरी तरह घायल हो गए। सभी लफंगे वहाँ से भाग निकले। वे दोनों वहीं पर गिर पड़े। पंखुड़ी के मुँह से धीमे से आवाज निकला – कमल! कमल कराहते हुए पंखुड़ी की तरफ बढ़ा। पास पहुँचकर वह पंखुड़ी से लिपट गया। पंखुड़ी रोए जा रही थी। कमल की हालत देखकर उसे सदमा सा लग गया था। कमल की साँसें उखड़ने लगी। मगर उसने हिम्मत बाँधते हुए पंखुड़ी को दिलासा दिया। बोलने लगा – अरे पगली! आज नहीं पूछेगी वो जगह कहाँ है? उसके मुख से आखिरी शब्द निकले – “बाहों में तेरे”

कमल ने पंखुड़ी की बाहों में ही दम तोड़ दिया। पंखुड़ी के मुंह से चीख निकल पड़ी और उसी चीख के साथ वह भी कमल की हमराह हो गई। एक दूसरे की बाहों में ही उनकी दुनिया थी और एक दूसरे की बाहों में उनकी कहानी भी सिमट चुकी थी।

– आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार

1 Like · 595 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
कविता(प्रेम,जीवन, मृत्यु)
Shiva Awasthi
स्वयं पर नियंत्रण कर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्
स्वयं पर नियंत्रण कर विजय प्राप्त करने वाला व्यक्ति उस व्यक्
Paras Nath Jha
भावो को पिरोता हु
भावो को पिरोता हु
भरत कुमार सोलंकी
मेरी हर अध्याय तुमसे ही
मेरी हर अध्याय तुमसे ही
Krishna Manshi (Manju Lata Mersa)
शिव सुंदर तुं सबसे है 🌧
शिव सुंदर तुं सबसे है 🌧
©️ दामिनी नारायण सिंह
सिन्दूर  (क्षणिकाएँ ).....
सिन्दूर (क्षणिकाएँ ).....
sushil sarna
अच्छा होगा
अच्छा होगा
Sudhir srivastava
दोहे
दोहे
गुमनाम 'बाबा'
अकेला तू शून्य
अकेला तू शून्य
Mandar Gangal
चाँद यूँ ही नहीं छुपा होगा।
चाँद यूँ ही नहीं छुपा होगा।
पंकज परिंदा
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
हो गये हम जी आज़ाद अब तो
हो गये हम जी आज़ाद अब तो
gurudeenverma198
विश्रान्ति.
विश्रान्ति.
Heera S
खुन लिए
खुन लिए
Kunal Kanth
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
वेतन की चाहत लिए एक श्रमिक।
Rj Anand Prajapati
...
...
*प्रणय प्रभात*
सुनो न
सुनो न
sheema anmol
सुना है इश्क़ खेल होता है
सुना है इश्क़ खेल होता है
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मिटेगी नहीं
मिटेगी नहीं
surenderpal vaidya
एक गुजारिश तुझसे है
एक गुजारिश तुझसे है
Buddha Prakash
रक्षाबंधन
रक्षाबंधन
Santosh kumar Miri
तुम बिन
तुम बिन
Rambali Mishra
Life is Beautiful?
Life is Beautiful?
Otteri Selvakumar
शायद वो हमें, अपने दर पर ही मिल जाते।
शायद वो हमें, अपने दर पर ही मिल जाते।
श्याम सांवरा
किसी को उदास देखकर
किसी को उदास देखकर
Shekhar Chandra Mitra
बँटवारे का दर्द
बँटवारे का दर्द
मनोज कर्ण
यदि हमें अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन करना है फिर हमें बाहर
यदि हमें अपने वास्तविक स्वरूप का दर्शन करना है फिर हमें बाहर
Ravikesh Jha
जिस अयोध्या नगरी और अयोध्या वासियों को आप अपशब्द बोल रहे हैं
जिस अयोध्या नगरी और अयोध्या वासियों को आप अपशब्द बोल रहे हैं
Rituraj shivem verma
*कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)*
*कैसे भूले देश यह, तानाशाही-काल (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
" सूत्र "
Dr. Kishan tandon kranti
Loading...