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23 Sep 2022 · 1 min read

" चंद अश'आर " - काज़ीकीक़लम से

🌺 चंद अश’आर 🌺

मिरी आशिक़ी ही मिरी पहचान है ।
तेरे दिल में बस्ती मिरी जान है ।।

समझ रहे थे जिसे गहरी चोट सब ।
वो तो तिरी चाहत का निशान है ।।

ग़मज़दा होकर तिरे दर से लौट आये हैं ।
हमारा हाल देखकर लोग भी हैरान है ।।

तिरे सामने रहते हैं सारा दिन हम तो ।
हमीं को छोड़कर सभी पे तिरा ध्यान है ।।

“काज़ी” तिरी बात पर यकीं कर लिया सबने ।
दिल को लगता है.. ग़लत तिरा बयान है ।।

©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , ” काज़ीकीक़लम ”
28/3/2 , इकबाल कालोनी , अहिल्या पल्टन
इंदौर , मध्यप्रदेश

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