आँखों की दीवारों में नमी अब बैठने लगी
आँखों की दीवारों में नमी अब बैठने लगी
भीतर की सब कच्ची , दीवारे ढहने लगी !!
दर्द से अश्क़ो की मौजें , जब तड़पने लगी
दुखती हुई रग दिल में और भी दुखने लगी !!
तपती हुई आहे – दर्द जला ना दे दिल कहीं
साँसे लेके तेरा नाम,तुझे सजदा करने लगी !!
आने लगा जी में जी , साँसों को साँसे जैसे
मेरे जख्मो पे जब तेरी तस्वीर उभरने लगी !!
फलक के दामन पर मातम सा छाने लगा
निकल के दर्दे-दिल से सदा जब गूंजने लगी !!
इक शख्स को तड़पता देख के मेरे भीतर
मौत भी मेरी मौत के अब लम्हे गिनने लगी !!
रोया है दर्द-ए-दिल कागज पे पुरव अपना
लोगो की नजर जिसे ग़ज़ल समझने लगी !!
पुरव गोयल