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16 Jun 2022 · 1 min read

उलझन भरी ज़िंदगी

है उलझने बहुत इस ज़िंदगी में
कभी कभी थक जाता हूं मैं
देखकर ज़िंदगी की सच्चाई
कभी कभी उदास हो जाता हूं मैं

जाने कैसे उलझे धागों के जैसे
होते हैं ये रिश्ते नाते यहां
इन्हें सुलझाने में ही कट जाती है ज़िंदगी
जीने के लिए यहां वक्त ही कहां

लड़ते हुए इस ज़िंदगी से
कट जाता है सफर ज़िंदगी का
न जाने कब सांझ हो जाती है
पता ही नहीं चलता ज़िंदगी का

चुरा लोगे कुछ लम्हें अपने लिए
वही आनंद है इस ज़िंदगी का
सपने भी अपने लगते हैं उस पल
समेट लो हर पल ज़िंदगी का

जी लो ऐसे हर पल ज़िंदगी का
जैसे आखिरी हो ये पल ज़िंदगी का
कौन जाने कब खत्म हो जाए सफ़र
क्या भरोसा है इस ज़िंदगी का

लड़ते भी रहो नित नई चुनौतियों से
बढ़ते भी रहो अपनी मंज़िल की तरफ
है सख्त बरफ की सिल्लियों की तरह ज़िंदगी
है यकीन एक दिन ज़रूर पिघलेगी ये बरफ।

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