Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 May 2022 · 1 min read

नदी का किनारा

मै नदी का एक किनारा
दृढ़ पाषाणवत अविचल
सशक्त हूं न कि बेसहारा
धरा संबल क्यों विकल

शांत धीर गहन गंभीर
एकटक ताकूं तेरी ओर
साथ रहूंगा अंत तक
ऐ नदी क्यों करती शोर

पंछी आते कलरव करते
पंजे उनके सहला जाते
सिहरन होती हर्षित होता
जलक्रीड़ा कर प्यास बुझाते

हिसंक अहिंसक पशु औ नर
के पैरों तले रौंदा जाता
ऐ धार मेरी तू मुझसे दूर
हर प्राणी तृप्त होके जाता

कंकड़ पत्थर बिछे हैं
तेरे और मेरे बीच
तू आना चाहे पास मेरे
पहले ये आते नजदीक

मुझसे तेरी धार के बीच
कुछ फिसलन भी है ऐ नदी
पास आके दूर हो जाती
एक छोर खड़ा बीती सदी

मौसम का रुख बदला
सोंधी महक और फुहारें
देखूं क्षितिज फिर तुम्हे
सोचूं आओगी पास हमारे

वर्षा ऋतु मनभावन आई
आकार बढ़े ज्यों यौवन का
मदमाती बलखाती लहरें
सूखा मिटा मन आंगन का

हे ! विधाता दे आशीष
नदी रहे तट के समीप
सबकी झोली भर जाए
सदैव रहें अपने करीब

स्वरचित
मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर
प्रकाशित

Loading...