Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
24 May 2022 · 1 min read

"स्थानीय भाषा "

डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
==============
भाषा शायद ही विलुप्त होती है ! नवीन शब्दों का संचय ..गतिमान शैली ..अलंकृत रूप …और …आकर्षित परिधान से सजाने का काम हमारे साहित्यकार ,……लेखक ,….कवि,….व्यंगकार …..और ……साहित्यनुरागी करते हैं ! …..हम भले ही रहें या ना रहें ..पर यह सिलसिला यूँ ही बना रहता है ! ……भाषा और साहित्य की युगलबंदी आवाध गति से चलती रहती है !……. इन महापुरुषों के अतिरिक्त भाषा का सहज ज्ञान हमें ग्रामीण बच्चों ……,ग्रामीण महिलाओं ……,खेत खलिहान में काम करने वाले मजदूरों……. और …..बुजुर्ग लोगों से मिल जाया करता है ! ……भाषा के विकास में इनलोगों का योगदान को नकारा नहीं जा सकता ! …पर आनेवाली पीढ़ियाँ कुछ बदली- बदली नजर आने लगी हैं ! ……८० के दशक के बाद शहरों में रहने वाले अधिकांशतः संताल बच्चे ..संताली बोलना जानते नहीं …..मिथिलांचल के भी शहरों में रहने वाले बच्चों को प्रायः -प्रायः यह रोग घर कर गया है !…… यह संक्रामक हरेक भाषाओँ में हमलोगों को मिलता है ! ……अपनी मातृभाषाओं से अनुराग कैसे छलकेगा ?……. अपने ही गाँवों में वे बेगाने लगेंगे !…. उन्हें वहां की संस्कृति और समाज से अभिरुचि हो ही नहीं सकती ! ……दोष हम लोगों का ही है !….यह रोग अब नासूर बनता जा रहा हैं ….!….हम जब किसी दूसरी भाषा को सीखना चाहते हैं तो बच्चे ही यथायोग्य हमें राह दिखाते हैं ……सोचा स्थानीय भाषा सीखूं
पर यहाँ के लोग अपनी पहचान ही खोने लगे हैं !
सस्नेह !
=================
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
भारत

Loading...