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10 Sep 2018 · 1 min read

नज़्म/बस चल रहा हूँ आहिस्ता आहिस्ता

कभी वक़्त मुझसे आगे
कभी मैं वक़्त से आगे
कभी सोते सोते मैं चलूँ
कभी जगते जगते मैं चलूँ
मैं अकेला इक़ अलबेला
इक़ अल्हड़ सा मुसाफ़िर
बस चल रहा हूँ किसी रास्ते
कभी किसी ख़ुशी के वास्ते
कभी किसी ग़म के वास्ते
हरदम मेरे नक्श-ए-क़दम
जैसे कोई गुलिस्तां गुलिस्तां
चल रहा हूँ ज़िन्दगी के सफ़र में
मैं बंजारा आहिस्ता आहिस्ता
बस चल रहा हूँ आहिस्ता आहिस्ता
अभी मेरे ये ठौर अभागे
अभी मेरे सब तौर अभागे
ये पल कभी रेशम के धागे
ये पल कभी कच्चे से धागे
ये मन विरां कहीं लगता नहीं
अभी अभी मन ख़ुद में लागे
जुदा जुदा सा रेला मैं अलबेला
मैं इक़ मुसाफ़िर थोड़ा सा काफ़िर
चल रहा हूँ हरदम नक्श-ए-क़दम
बदी से टल टलकर मैं बचता बचता
चल रहा हूँ मैं ज़िन्दगी के सफ़र में
दुनिया से न्यारा आहिस्ता आहिस्ता
बस चल रहा हूँ आहिस्ता आहिस्ता…….

–अजय “अग्यार

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