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28 May 2022 · 1 min read

गुणगान क्यों

यह कैसे तूँ मान लिया कि,
गीत सुहावन ही गाऊंगा ।
शब्द सार आह्लाद की लहरी,
रस निर्झर झर बरसाउंगा ।।

आतप में शीतल बयार सा,
शब्द समर्पण कर सकता क्या
खाकर जख्म भी रोऊं ना मैं,
फिर कैसे मैं जी पाऊंगा ।।

काँटों पर मैं फूल बिछा दू,,
शब्द फूल क्या खिल पायेगा
नफरत में रस लहरी गाऊं
यह मुझसे क्या हो पायेगा ।

लेकर लहू नयन शोणित उर ,
भ्रमर कुंज की गाथा गाऊँ ?
घायल हूँ मैं रोने दे रे,
आंसू में ना हंस पाऊंगा ।।

सत्य प्रकाश शुक्ल बाबा

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