Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
16 May 2022 · 1 min read

शायरी

ये महफ़िल ये गुलिस्तां हर निगाहें मुझे ढुंढेगी
इन वादियों को जोड़ो जनाव हवा भी मेरा पता पुछेगी
अभी तो मौसम को करवटें बदलना है
हर लम्हें मेरा अफसाना शौक से सुनाएंगी

रौशन राय के कलम से
9515651283/
7859042461

Loading...