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29 Apr 2022 · 2 min read

काश बचपन लौट आता

काश जिन्दगी तु मेरी
एक बात मान जाती ।
एक बार फिर मेरा बचपन
मुझको तुम लौटा देती ।

जिंन्दगी की कशमकश से,
मैं बहुत दूर निकल जाती।
अपनी सारी चिन्ता फ्रिक
को मैं भुल जाती।

फिर से इस जीवन को मैं
सकून के साथ जी पाती।
फिर मै अपनी खामोशी वाली
यह आवाज को भूल जाती।
फिर से बचपन वाली हुड़दंग मे
मैं भी शामिल हो जाती।

फिर मैं भी मिट्टी में सन्नकर
उसकी खुशबू को पाती।
उसी मिट्टी में सन्नकर जब
मैं अपने घर पर आती।
माँ की प्यारी डाँट मुझे फिर ,
से सुनने को मिल जाती।

फिर से अपने बचपन वाली
खुशियों को मैं समेट पाती।
एकबार गुडडे-गुड़ियाँ का
मैं ब्याह फिर से रचाती।
फिर अपने सारे दोस्तो,
को उसमे मै बुलाती।

उनके साथ बैठकर फिर
मैं बाते खुब बनाती।
अभी वाले सारे गम को
मैं भूल जाती।
फिर से बचपन वाली
सारी मजा मै उठाती।

भूल जाती मै शहर का
यह तन्हा जीवन ।
फिर एक बार गाँव की
प्यारी हवा मैं खो जाती।
इंटर्नेट वाले खेल को छोड़कर ,
गांव वाले खेलो का
हिस्सा बन जाती।
फिर से नुक्कड़ पर वाली
समोसे और मिठाई का
स्वाद मै उठाती ।

फिर तालाब के बीच पत्थर
उछालकर मै खुश हो जाती।
फिर से डुग,डुगी बजाते
साईकिल वाले से बर्फ का गोला खाती,
और फिर से एकबार उस गोले,
मैं सारे फलो का स्वाद
भरकर चख पाती।

आसमान मे दूर- दूर तक
मै पंतग उड़ाती रहती।
तितलियो के पीछे भागकर
दूर-दूर तक मै जाती।

बगुले के पीछे मै भागती।
कोयल के आवाज संग
अपनी आवाज मिलाती।
छोटी- छोटी बचपन वाली
खुशियों मै खुश हो जाती।

न इतने बड़े सपने होते है,
न इतना दुख उठाती।
काश जिन्दगी मुझको
मेरा बचपन लौटा देती।

काश तुम उपहार स्वरूप
मेरा बचपन मुझे लौटा देती।
मेरी खुशियाँ एकबार मुझको
फिर से मिल जाती।

काश जिन्दगी तू ऐसा कुछ कर पाती!

~अनामिका

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