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8 Apr 2022 · 1 min read

एक के बाद एक उदासी...!

शीर्षक – एक के बाद एक उदासी…!

विधा – कविता

परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
पिन – 332027
मो. 9001321438

एक के बाद एक उदासी
चल रही थी गंतव्य पथ
बैचेन कठोर सतह पर
हृदय की कोमलता बिछी
रास्तें रहे तलाशते
भविष्य की चादर में
पैर पसारें कब गये थे।
आशा-गुदड़ी के धागे
होते रहे कमजोर
फटेहाल नग्न होकर
कुरेदते अपने विचार
मिलता न क्षोभ हर बार
कभी-कभी रहस्य सुलझते
कभी उलझते रहते
क्षुद्रता के अवशेष।
किसी गहरी साँस के साथ
उलझती थी एक तस्वीर
कहती तो क्या?
पर भावधारा बह जाती
रूप विचित्र बनकर
खिसक जाती ओझल हो
दायरें के किनारे जैसे ही छूटते
मौन छा कर ऊठते रहते
कुछ तरल झरने
बैठ जाते शीघ्र ही
पदचिह्न छोड़कर
अवसादों के अवसर में
झलकती रहती स्मित-हास
आवरण के पर्दे झीने न थे
शब्द-रूप के बाहर भी
अंदर भी बिखरते
और फूटते कुछ अंकुर।

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