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7 Apr 2022 · 1 min read

रोटी जोड़ना सब्जी जुटाना याद है

वो ग़रीबी का हमें अब तक जमाना याद है
जोड़ना रोटी कभी सब्ज़ी जुटाना याद है

रोज पर्दा डालते थे दर्द पर हम इस कदर
एक चेहरे पर नया चेहरा लगाना याद है

एक गोलक की ख़ज़ानों से बड़ी औकात थी
उन खज़ानों को खुशी से फिर लुटाना याद है

फ़र्क़ बाहर और अंदर की फ़ज़ा में कुछ न था
तन पे पन्नी और बारिश का जमाना याद है

गलतियां अपनी नहीं थी और इसके बावजूद
तंज़ आपनों के वह बातों का निशाना याद है

वक़्त की ‘अरशद’ नज़ाकत देखकर चलते रहे
जीतकर अक्सर खुशी से हार जाना याद है

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