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22 Apr 2022 · 1 min read

पिता

शीर्षक-पिता

जीवन भर बोझा ढोता है।
अक्सर सुख से कब सोता है।।

सीने में दफनाता हर गम।
कभी न खुलकर वह रोता है।।

हर विपदा के आगे वह तो।
हरदम ढाल बना होता है।।

बन जाये सुखदायी कल तो।
अभिलाषा मन की बोता है।।

आ जाती कैसी भी मुश्किल।
यह आपा कभी न खोता है।।

जीवन की नैया में अक्सर।
यह खाता रहता गोता है।।

माँ ममता की शीतल छाया।
लेकिन पिता कर्मफल जोता है।।

संतोषी देवी।

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