यह तो संविदा कर्मी है इसमें जान थोड़ी है
जो मरता है तो मरने दो कोई इंसान थोड़ी है
कि यह तो संविदा कर्मी है इसमें जान थोड़ी है
बहाता है पसीना काटकर जो पेट वर्षों से
बहुत अहसान करता है मगर भगवान थोड़ी है
जवानी खप गई जिसकी किसी की जी-हुज़ूरी में
था अपने गाँव का टापर कोई नादान थोड़ी है
कि इसके वास्ते क्योंकर कोई आँसू बहायेगा
अगर ये मर गया तो राष्ट्र का नुकसान थोड़ी है
सियासत से उसे अब एक पल फुरसत नहीं मिलती
किसी के दर्द से वो हुक्मरां अनजान थोड़ी है
ज़माना हँस रहा ‘आकाश’ लेकिन सोचता हूँ मैं
किसी की मौत पे आ जाए वो मुस्कान थोड़ी है
ग़ज़ल– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 24/03/2022