Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
21 Mar 2022 · 1 min read

प्रेम

प्रेम स्वीकृत हो या अस्वीकृत
प्रेम तो बस प्रेम है।
मान हो या अपमान ,
प्रेम तो बस प्रेम है।
पत्थरो में भी रीस जाए
इतना तरल है।
मूढ़ भी समझ जाये
इतना सरल है।
नाप ले सीमाएँ व्योम की,
बिना पंख के पाखी ये,
समा जाये जिसमें सम्पूर्ण जगत,
शून्य की भाँति है स्थिर ये,
प्रेम तो बस प्रेम है।
तीव्र गति सा बहाव
प्रेम में इतना हलचल है,
पूरी तरह से जो भर दे ,
पूरी तरह से जो खाली कर दे,
प्रेम तो बस प्रेम है।
प्रेम बिना कोई भोगी नहीं ।
प्रेम बिना कोई योगी नही।
…………..पूनम कुमारी

Loading...