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5 Oct 2021 · 1 min read

हँ मे हँ मिलाऊ (हास्य कविता)

हँ मे हँ मिलाऊ
(हास्य कविता)

खादिक अंगा पहिर पार्टि ऑफिस मे जल्दी आऊ
शहर बजार खूम दंगा कराऊ
करू चापलूसी एक्को रति ने लजाऊ
नेता जी के हँ मे हँ मिलाऊ।

चुनावी घोषणा भ गेल त
टिकट लेल खूम जोर लगाऊ
देखब कहिं टिकट ने कटि जाए
तहि दुआरे हुनके हँ मे हँ मिलाऊ।

एहि बेर टिकट ने भेटल त
पार्टि ऑफिस के खूम चक्कर लगाऊ
आलाकमान के गप मानू हुनका लेल जिलेबी छानू
अहाँ टिकट दुआरे हुनके हँ मे हँ मिलाऊ।।

क्षेत्रक विकास लेल त
हम ई करब ओ करब
कोनो ठीक नहि चुनाव जीतलाक बाद
अहाँ अप्पन जेबी टा भरब।।

घोषणा पत्र मे रंग बिरंगक ऑफर
चुनावी जनसभा मे खूम चिचियाउ
एलक्सन जीतलाक बाद किछु ने करू
सरकारी रूपैया सँ विदेश यात्रा पर जाऊ।।

नहि लोकसभा त विधानसभा
एहि बेर नहि त अगिला बेर
टिकट त चाहबे करी किछु करू
अहाँ कोनो बड़का नेता के पैर पकरू।।

एलक्सन लड़ब हारब की जीतब
ई त बड्ड नीक धंधा छैक
एहेन रोजगार फेर नहि भेटत
एकरा आगू आन चिज त मंदा छैक।।

जतैए देखू ततैए एलेक्सन
साहित्य खेल आ संसद भवन
सभ ठाम भेटत एकर कनेक्सन
कुर्सी भेटत कि नहि तकरे अछि टेंशन।।

देशक जनता जाए भांड़ मे
हमरा कोन अछि मतलब
अपना स्वार्थ दुआरे एलक्सन लड़ब
खुलेआम कहू एक्को रति ने लजाऊ।।

लेखक:- किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

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