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25 Feb 2022 · 3 min read

मैथिली लेखनक शून्य बज़ार स्थिति? वेबसता कारण आ समाधान.

मैथिली लेखनक शून्य बज़ार स्थिति? वेबसता कारण आ समाधान.

मैथिली लेखन मे छैहे की? प्रशन रेखांकित करू यथार्थ देखू ताकू फरीचाएल जवाब अपनो भेट जाएत। ई कटु सत्य जे मैथिली लेखन गिरोहबादी कब्जा अकादमी पुरस्कारी चमचै, पेटपोसुआ आयोजनी, देखावटी कवि सम्मेलन, पुस्तक लोकार्पण, फ्री किताब बांट तक सिमित आ ओझराएल रहै. जेकर बज़ार मूल्य जीरो रहलै आ मैथिली लेखक के शून्य बज़ार स्थिति के वेबसता जकड़ने रहलै. लेखक सब अइ बिकट स्थिति स उबरै लै सामूहिक प्रयास तक नै केलक? तेकर फलाफल मैथिली लेखन अखनियो भोगि रहल जे दसो पचास टा किताबक बिक्री नै होई छै. दर्शक पाठक मैथिली लेखन के देखै पढ़ै मे कोने रूची नै रखै छै?
शून्य बज़ारक वेबसता के कारण:-
1. मैथिली लेखक सब कोनो बुक सेलर प्रकाशक आ मार्केटिंग वेबस्था लै सामूहिक प्रयास चिंता कहियो नै केलकै? सब अपना गिरोह मे मगन फ्री किताब बंटलकै पुरूस्कारक जोगार मे रहलै आ हे लेखक हेबाक फुंसियाहिक फुफकार मे बमफलाट भेल रहलै.

2. मैथिली लेखक सिरिफ लेखकिय तगमा आ धुतहू लै दस पचास टा किताब छपा नेहाल भ गेल. पब्लिक देखौ आ पढ़ौ की ने? हे धैन सति लै? जोगारी पुरूस्बकार आगू बजार स्थिति पर कोनो चिंता नै?

3. मैथिली लेखक एकटा सामूहिक सर्वजन मंच नै तैयार केलक जे प्रकाशक लेखक बिक्रेता दर्शक पाठक के सामूहिक प्लेटफार्म के माध्यम स एकत्रित केने नीक बजारू वेवस्था बनैबतै? लेखक संघ बना दोसरा लै सदस्यता फॉर्म तक नै देलकै. सब लेखक गिरोह अप्पन ठेकेदारी मे अपसियांत रहलै.

4. मैथिली लेखक एक दोसराक लेखन मे की छै तेकर चर्च कहियो ने केलकै आ नै दर्शक तक बात पहुंचेलकै? आयोजन सब मे होहकारी भ गेल बस वरिष्ट लेखक हेबाक दाबिए चूर. अहाँ सबहक लिखल किताब कए प्रति बिकाइए से देखू ताकू ने.

5. कोनो एहेन मैथिली पत्र पत्रिका अखबार नै जे मैथिली रचना पर पारतोषिक मूल्य दैत होउ. कोनो तरहे घीच तीरके पत्रिका सब नाम लै छपै छै आ फेर बन्द. सर्कुलेशन बजार वेवस्था लै लेखक के कोनो चिंता नै जेकर रचना छपलै ले फूइल के तुम्मा?

6. वर्चस्वादी गिरोहबादी मैथिली लेखन मे दस टा लेखक के अपना मे मिलानी नै जे सामूहिक हेबाक उम्मीद करत. सब अपना गिरोह बले लेखक हेबाक भ्रम निशा मे मातल रहैए. कोई केकरो मोजर प्रोत्साहित नै करत? दर्शक पाठक जुड़लै कीने तेकर एक्को पाई चिंता नै?

7. मैथिली लेखक सपनो मे राॅयल्टी दिया ने सोचि सकत? रचना छपलै तबे पत्रिका कीनब देखब सेहो बड्ड बाधक बनल छै मैथिली बजार वेवस्था के बिकसित होई में.

8. मैथिली लेखक बजार व्यवस्था के महत्वहीन बुझैत गमैत अपना पैर पर अपने कुड़हैर मारैत रहल. खाली पुरूस्कार आयोजन होहकारी तक सिमटल रहल? तेकरे दुष्परिणाम आई मैथिली साहित्यकार भोगि रहल.

9. अप्पन लेखनि के अप्पने मार्केटिंग वला दुशचक्र के तोड़बाक प्रयासक संग एक दोसर लेखक लै सामूहिक मार्रकेटिंग के सुजोग अवसर ग्राउंड लेवल पर करै पड़त.

10. मैथिली लेखन मे ग्राउंड रिपोर्टिंग व्यवस्था के एकदम अभाव? अई शून्य के पाटै लै बज़ार व्यवस्थाक चलैन एकदमे नहि?

11. मैथिली लिखै बजै छपै काल सोतियामी मानक के अंधानुकरण एतेक जे बारहो बरण के बोली के संपादित क ओकरा मानके रूप मे छापब. अइ स मैथिली लेखन असंख्य बहुजन दूर होइत गेलै. लोक के पढ़ै मे बड्ड कैठनाह बुझेलै तइओ मैथिली लेखक बुधिआरी खेला मे लागल रहल.

12. मैथिली लेखन मे पाठकीय पठनीयता दर्शक प्रतिक्रिया के एकदमे अभाव रहलै. मैथिली आयोजन मे दर्शक स बेसी मंच पर उपस्थित कवि अइ बात के प्रमाण हइ क. दर्शक विचार जानै के होत तबे मैथिली लेखन मजगूत हेतै आ बज़ार मे रंगत पकड़तै.

समाधान:-
1. पुरस्कारी दाबि छोड़ि दर्शक स सोझहे संवाद क मैथिली लेखन के बज़ार बनबअ ताकअ आ सामूहिक भागिदारी मे खटै पड़त. एहि स मैथिली लेखक लै सामूहिक मंच निर्माण लै डेग आगू बढ़त.

2. मैथिली पत्र पत्रिका सबहक वितिय स्थिति मजगूत करै लै बजार वेबस्था स्थापित करै परत. सोझहे रचना छैप टा गेल आ निफिकिर तै स काज नै चलत.

3. कोनो तरहक मैथिली आयोजन मे विबिधता माने ई जे एकटा एहेन मंच वा सत्र जतए साहित्यकार, लेखक, प्रकाशक, बिक्रेता, फिल्मकार, कलाकार, मार्केटिंग स्टाफ सब एक दोसर के पूरक संगी बनि मैथिली बजा़र स्थापित क सकैए.

4. गिरोहबादी वेबस्था के ध्वस्त क सामूहिक भागीदारी वला मंच बनबै पड़त. दर्शक पाठक के सोझहे जोड़ै परत. मैथिली लेखन के बजार वेबस्था विस्तार लै चिंता क सार्थक प्रयास करै पड़त.

5. मैथिली लेखन मे बजार किए नै छै? केना हेतै? सामूहिक समाधान दिस नि:स्वार्थ डेग आगू बढ़बै पड़त. मार्केटिंग वेबस्था के छोट काज नै बूझि एकर दूरगामी लाभ आ दर्शक पाठक स सोझहे संवाद करबाक बेगरता बुझहू.

6. मैथिली लेखन मे ग्राउंड रिपोर्टिंग व्यवस्था के एकदम अभाव. अई शून्य के पाटै पड़त. खाली कथा कविता साहित्यक आयोजन वला ख़बैर पर भर देने रहब अविलंब बंद करै पड़त.

आलेख- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)

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