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8 Feb 2022 · 1 min read

ग़ज़ल- जिसने मुझे सिखाया, उस्ताद है पुराना...

भूला नहीं हूॅं कुछ भी, सब याद है पुराना।
जिसने मुझे सिखाया, उस्ताद है पुराना।।

पिंजरा बदल बदल कर, चिड़िया फुदक रही है।
नादां समझ न पायी, सय्याद है पुराना।।

चंदा को जबसे छत पर, अपने क़रीब देखा।
वो दाग़दा नहीं है, अपवाद है पुराना।।

राधाकिशन हमीं थे, थे हीर रांझा हम ही।
दो दिल नये मिले पर, संवाद है पुराना।।

दुल्हन सी वह सजी है, फीकी सी ये हंसी है।
ये ऑंखें कह रही हैं, अवसाद है पुराना।।

परवाना जल मरेगा, शम्’अ की रोशनी में।
सर पर ज़ुनूं है उसके, उन्माद है पुराना।

है ‘कल्प’ तू पुराना, आया नया ज़माना।
कीमत सदा बढ़ी है, जो खाद है पुराना।।

✍ अरविंद राजपूत ‘कल्प’

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