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23 Jan 2022 · 2 min read

जब अल्फ्रेड नोबेल ने सुनी अपने निधन की खबर

जब अल्फ्रेड नोबेल ने सुनी अपने निधन की खबर

सन 1888 की बात है। डायनामाइड के आविष्कारक के भाई का निधन हो गया था। घर में शोक व्यक्त करने के लिए लोग आ रहे थे, मगर वह रोज की तरह अपनी बालकनी में बैठकर अखबार पढ़ रहे थे। अचानक उनकी नजर एक शोक संदेश की हेडिंग पर पड़ी, जिसमें लिखा था, ‘मौत के सौदागर, डायनामाइट के आविष्कारक अल्फ्रेड नोबेल का निधन।’ अपना नाम वहां देखकर वैज्ञानिक हैरान रह गए। अखबार ने गलती से उनके भाई लुडविग के स्थान पर उनके निधन का समाचार प्रकाशित कर दिया था।
खुद को संभालने के बाद उन्होंने वह शोक संदेश एक बार फिर ध्यान से पढ़ा। उसमें लिखा हुआ था, ‘डायनामाइट किंग अल्फ्रेड नोबेल का निधन। वह मौत का सौदागर था, जो आज मर गया।’ जब उन्होंने अपने लिए ‘मौत का सौदागर’ संबोधन पढ़ा तो उन्हें बहुत दुख हुआ और वह इस सोच में पड़ गए कि क्या अपनी मृत्यु के पश्चात वह इसी रूप में याद किया जाना चाहेंगे? इस घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया और उनका जीवन बदल दिया। उन्होंने फैसला किया कि वह कतई इस तरह याद नहीं किया जाना चाहेंगे। कई दिनों तक आत्ममंथन करने के बाद उन्होंने विश्व शांति और समाज कल्याण के लिए काम करने करने की शुरुआत की।
मृत्यु के पूर्व उन्होंने वसीयत लिखी और अपनी समस्त संपत्ति विश्व शांति, साहित्य, भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में अग्रणी कार्य करने वालों को पुरस्कार प्रदान करने हेतु दान कर दी। उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी वसीयत के अनुसार नोबेल फाउंडेशन की स्थापना की गई और उसके पांच वर्ष उपरांत 1901 में प्रथम नोबेल पुरस्कार प्रदान किए गए। आज यह विश्व का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है। अल्फ्रेड नोबेल आज ‘मौत के सौदागर’ के रूप में नहीं अपितु एक महान वैज्ञानिक, समाजसेवी के रूप में और नोबेल पुरस्कार के लिए याद किए जाते हैं।
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