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13 Jan 2022 · 2 min read

मैं हूँ वो पतंग

मैं हूँ वो पतंग…
जो उड़ती फिरती मस्त सी…
वो भी बेखबर सी उड़ती गई पतंग सी
ढील मिलती गई ऊंचाई छूती गई उसे भी मालूम
कि दायरें हैं उसके भी ढील तक ही सीमित
वो पतंग भी बेखबर कि न जाने कहाँ जाकर हो अंत
मैं हूँ पतंग बेखबर ,बेपता ,बेपनाह,उड़ती हुईं
मैं हूँ पतंग,उड़ती पतंग

मैं हूँ वो पतंग…
जो उड़ती फिरती मस्त सी…
उड़ता हीं जाए बेखबर सी मंजिल की तलाश में
कोई खींचे जो उसे कहाँ है उसकी मंजिल बताए उसे
और लहराए मस्त सी मन मे लिए उड़ान
बादलों से खेले, उनसे टकराये झूम झूम इठलाये
मैं हूँ पतंग बेखबर ,बेपता ,बेपनाह,उड़ती हुईं
मैं हूँ पतंग,उड़ती पतंग

मैं हूँ वो पतंग…
जो उड़ती फिरती मस्त सी…
तूफानों में भी फँस जाए तो भी ढील से निकल आये
बाहर आ इतराए कि आजादी मिली हो जैसे उसको
बेखबर है फिर, बारिश से भी क्या मालूम उसको
कि बून्द ही उसके जीवन बिदाई की कहानी गाये
मैं हूँ पतंग बेखबर ,बेपता ,बेपनाह,उड़ती हुईं
मैं हूँ पतंग,उड़ती पतंग

मैं हूँ वो पतंग…
जो उड़ती फिरती मस्त सी…
बादल उसके साथ तो हैं पर जीवन दान न दे पाए
कोई साथ भी है न साथ ऊपर तक भेजने वाली डोरी का
दूर थामे उस पतंग की डोर वो चरखी भी साथ नही हो
किसी और मंज़िल की ओर ले जाती है डोर उसकी
मैं हूँ पतंग बेखबर ,बेपता ,बेपनाह,उड़ती हुईं
मैं हूँ पतंग,उड़ती पतंग

मैं हूँ वो पतंग…
जो उड़ती फिरती मस्त सी…
गिरती है ,उड़ती है पर मर्जी से रुक नही सकती
दूर किसी और आसमान में जाने को वो तैयार
पर ये उड़ान आख़िरी नहीं, यही सोच उड़ती है ऊंची उड़ान
उड़ेगी फिर से, लिए नई डोर नए हाथ मे अपनी मंजिल
मैं हूँ पतंग बेखबर ,बेपता ,बेपनाह,उड़ती हुईं
मैं हूँ पतंग,उड़ती पतंग

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