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10 Dec 2021 · 1 min read

गंतव्य की ओर चले

शिशुकाल का वात्सल्य देखा
बचपन का खेला खेले
युवावस्था भोगी
उम्रदराज हो चले
आओ अब गंतव्य की ओर चले
संसार की चकाचौंध देखी
मोह माया में लिप्त रहे
इंद्रियों के बंधन में बंधे
मन के फेरों में फंसे
आओ अब गंतव्य की ओर चले
धन दौलत के नशे में रहे
वासना तृष्णा में उलझे
8400000 योनियों में घूमे
इस मायानगरी में भटक रहे
आओ अब गंतव्य की ओर चले

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