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2 Dec 2021 · 1 min read

राधा सम तुम प्रीत हमारी।

राधा सम तुम प्रीत हमारी।
रूप सुघर तन मादकता की, लगती हो फुलवारी।
कुन्तल कारे मेघ सरीखे, चितवन है मतवारी।
रूप – रंग तेरे निज मन की, पीर मिटाये सारी।
देख तुझे मन हुआ बावरा, छेड़ रहा धुन प्यारी।
पल-पल मिलने को मन मचले,कैसी लगी बिमारी।
मंदिर – मंदिर भटक रहा मैं, साथ मिले बनवारी।
सब तेरे ही कारण छोरी, हे! पितु- मातु दुलारी।।

पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

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