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8 Nov 2021 · 1 min read

दोहे

कर्म
भाग्य भरोसे बैठकर, मांँगे भीख फ़कीर।
कर्मवीर नित कर्म कर, होता नहीं अधीर।।
देश
मेरे भारत देश का, दसों दिशा यशगान,
न्योछावर तन- मन करूँ, इसका हो सम्मान।।
विधान
जन्म- मरण निश्चित यहांँ, विधि का यही विधान।
अमर कहीं पाया नहीं, ढूंँढा सकल जहान।।
जल
जल संरक्षण के बिना, मनुज रहा पछताय।
खड़ा पंक्ति में क्रय करे, राह आज दिखलाय।।
शीत
शीत लहर आंँगन चले , जलने लगे अलाव।
सरसों , रोटी साथ में ,चढ़े मटर के भाव।।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)

Language: Hindi
522 Views
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
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