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6 Nov 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुहब्बत हो गई तुमसे इशारों ही इशारों में
दिखाई तू मुझे देती जिधर देखूँ नज़ारों में//1

खिलाया है चमन दिल का तुम्हीं ने दिल वफ़ा देकर
बहारों-सी मिली हो तुम किये अपने करारों में//2

सिले तूने दिये इतने बयाँ करना हुआ मुश्क़िल
बनी मेरे तुम्हीं हर ज़ख्म का मरहम हज़ारों में//3

सदाक़त ही दिलों को जोड़ती है याद रखता हूँ
खड़ी रहती नहीं दीवार बन शक़ की दरारों में//4

तेरी चाहत कभी ‘प्रीतम’ भुला सकती नहीं दिलबर
मुहब्बत में पड़े चलना चलूँगी मैं अँगारों में//5

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

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