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3 Nov 2021 · 1 min read

मुक्तक।

जला कर तुम चमन अपना न जाने क्यों रुलाते हो।
जमीं पावन हमारी है इसे दोजख बनाते हो।।
अगर इंसानियत होती हमारे साथ बतियाते।
लहू अपनों का पी कर तुम हवस अपनी मिटाते हो।।
पंकज शर्मा”तरुण”.

Language: Hindi
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