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24 Oct 2021 · 1 min read

कभी न होते आम

रहे हमेशा अजनबी,
कभी न होते आम

वज़ीर आज़म ही रहे,
पहुँचे ना पैग़ाम

رَہے ہَمیشَہ اَجْنَبی،
کبھی نہ ہوئے عام

وزیر اعظم ہی رہے،
پہنچے نا پیغام

***

_______________________
लोकतान्त्रिक व्यवस्था ने ऐसी दीवार खींच दी है कि जनता द्वारा जनता के लिए चुनी गई सरकार के प्रतिनिधि सदैव ही जनता से दूर ही रहे हैं। कभी भी वे लोगों के काम नहीं आये या यूँ कह लीजिये लोगों के लिए काम न कर सके। मन्त्री से लेकर उनके सन्तरी तक सब महान हो गए। न तो उनके सन्देश जनता तक ही ठीक से पहुँचे और न ही जनता उन्हें अपना सन्देश दे पाई।

Language: Hindi
1 Like · 454 Views
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
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