Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Oct 2021 · 1 min read

शाकाहारी बनो ..

मत बनाओ पेट को अपने ,
मृत बेजुबानों का कब्रिस्तान ।
कैसे तुम उनकी आहोें से ,
रह सकते हो अंजान ।

स्वाद तुम्हारी जुबान का ,
उनकी जिंदगी छीन लेता है ।
स्वाद यदि फल और सब्जियों में लो ,
इसमें तुम्हारा क्या जाता है ?

और भी बहुत सी चीजें है ,
भोजन के विकल्प है बहुत ।
शाकाहारी बनकर तो देखो ,
इसमें आत्मिक सुख है बहुत ।

किसी की जिंदगी छीन कर ,
उसके जिस्म को आहार बनाना ।
तुम्हें इंसान नहीं बनाता ,
क्या जरूरी है तुम्हारा दानव बनना।

वाकई जब तुम मांस भक्षण करते हो ,
इंसान कहीं से भी नहीं दिखते हो ।
लाल लाल आंखों से अंगारे बरसते ,
रक्त पिपासु पूरे चंडाल दिखते हो ।

तुम्हें भगवान ने इस उद्देश्य से ,
तो नही बनाया था।
तुम्हें उसने इन मासूम बेजुबानों का ,
रक्षक बनाया था।

मगर आज रक्षक ही भक्षक बन बैठा,
तो इन निरीह जीवों की पुकार सुनें कौन?
कलयुग की। भयावता का ऐसा है असर ,
इनकी मौन दर्दीली चीखें सुनें कौन ?

मांसाहारी जीव जैसे शेर और चीते ,
अपने लिए भोजन नहीं पका सकते ।
उनकी शारीरिक संरचना ऐसी है ,
वो इंसानों की तरह काम नहीं कर सकते ।

इसीलिए तो मांस खाने का अधिकार ,
भगवान ने केवल वन्य जीवों को दिया ।
और तुम्हारी शारीरिक संरचना के आधार पर ,
उसने शाकाहार भोजन को प्रयुक्त किया ।

अंततः हमारी है इस मनुष्य समाज से विनती ,
कृपया भोले मासूम जीवों की बद्दुआएं न लो ।
जीवन रक्षक बनकर उनसे स्नेह करो, मीत बनाओ ,
मगर अपने सुख हेतु उनके प्राण मत लो ।

Language: Hindi
6 Likes · 10 Comments · 2472 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from ओनिका सेतिया 'अनु '
View all

You may also like these posts

*आवागमन के साधन*
*आवागमन के साधन*
Dushyant Kumar
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पेड़ विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
चिन्ता
चिन्ता
Dr. Kishan tandon kranti
दिन सुहाने थे बचपन के पीछे छोड़ आए
दिन सुहाने थे बचपन के पीछे छोड़ आए
इंजी. संजय श्रीवास्तव
जज़्बात-ए-इश्क़
जज़्बात-ए-इश्क़
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
यमुना मैया
यमुना मैया
Shutisha Rajput
आज के दौर में मौसम का भरोसा क्या है।
आज के दौर में मौसम का भरोसा क्या है।
Phool gufran
ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
Buddha Prakash
औचित्य
औचित्य
Nitin Kulkarni
भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी
भारत रत्न अटल बिहारी बाजपेयी जी
Santosh kumar Miri
तेरी याद आती हां, बहुत याद आती है मां
तेरी याद आती हां, बहुत याद आती है मां
कृष्णकांत गुर्जर
सांसों की इस सेज पर, सपनों की हर रात।
सांसों की इस सेज पर, सपनों की हर रात।
Suryakant Dwivedi
परिस्थिति और हम
परिस्थिति और हम
Dr. Rajeev Jain
यार कहाँ से लाऊँ……
यार कहाँ से लाऊँ……
meenu yadav
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
हे आदिशक्ति, हे देव माता, तुम्हीं से जग है जगत तुम्ही हो।।
Abhishek Soni
जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
जब साथ छोड़ दें अपने, तब क्या करें वो आदमी
gurudeenverma198
तो मैं उसी का
तो मैं उसी का
Anis Shah
2888.*पूर्णिका*
2888.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ख़्वाब में हमसे मिल कभी आ के
ख़्वाब में हमसे मिल कभी आ के
Dr fauzia Naseem shad
मेरी मंज़िल क्या है,
मेरी मंज़िल क्या है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
न‌ए वर्ष पर सबको प्रेषित शुभकामना न‌ई
न‌ए वर्ष पर सबको प्रेषित शुभकामना न‌ई
Dr. Sunita Singh
*छिपी रहती सरल चेहरों के, पीछे होशियारी है (हिंदी गजल)*
*छिपी रहती सरल चेहरों के, पीछे होशियारी है (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
नववर्ष के रंग मे ढ़लते है
नववर्ष के रंग मे ढ़लते है
Bhupendra Rawat
नही हिलाना भूलकर,अपनी वो बुनियाद
नही हिलाना भूलकर,अपनी वो बुनियाद
RAMESH SHARMA
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
मौसम है मस्ताना, कह दूं।
पंकज परिंदा
मेरी एक बार साहेब को मौत के कुएं में मोटरसाइकिल
मेरी एक बार साहेब को मौत के कुएं में मोटरसाइकिल
शेखर सिंह
चाँद...
चाँद...
ओंकार मिश्र
निलगाइन के परकोप
निलगाइन के परकोप
अवध किशोर 'अवधू'
पात्रता
पात्रता
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
Loading...