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22 Oct 2021 · 1 min read

सड़क पर ढेला

पार्दरशी टेप है, सब के होठ पर,
माथे पर सिकुड़न, जहनी निराशा
मुंह छुहारे सा, आंखे भौचकी
खोने लायक, कुछ नहीं
पाने की कपट कल्पना का भी सुकून नहीं ,
बेशक हम, ज़िंदा हैं
लाभार्थियों की गिनती के लिये,
रैलियों की भीड़ के लिये,
बहुत से स्वाँग के लिये,

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