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15 Oct 2021 · 1 min read

हम देख नहीं पा रहे

ऊंची हो रही है दीवारें
बाहर झांक नहीं पा रहे
है अंधेरा यहां या
हम देख नहीं पा रहे।।

धूल जम गई है
घर के शीशों पर
अब उनमें कुछ भी तो
हम देख नहीं पा रहे ।।

खोद ली है कब्र उसने
अब जनाज़े की तैयारी है
है मौत सामने मगर
हम देख नहीं पा रहे।।

है वो हमारे सामने खड़ा
जो पुकार रहा है हमें
फिर भी न जाने क्यों
हम उसे देख नहीं पा रहे।।

क्या हो गया है हमको
बिलख रहे है भूखे बच्चे
मांग रहे हैं सड़कों पर भीख
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।

बढ़ रही है महंगाई
लाखों सपने है टूट रहे
अब छूट रहे सांसों के तार
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।

वादे किए थे जो हमने
आज हम वो भी भूल रहे
ये कैसा चश्मा पहना है जो
हम ये भी देख नहीं पा रहे।।

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