Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
15 Oct 2021 · 1 min read

यह तंग गलियां

लोग
चमकती हुई चीजों के पीछे क्यों
भागते हैं
कीचड़ में सनी गलियों में
क्यों नहीं जाते
जब तक उनकी कोई मजबूरी न
हो
एक चमकते हुए चांद के साथ
रात का अंधेरा भी तो होता है
यह क्यों नहीं देखते
बस चांद की सुंदरता में खो
जाते हैं
रात भर आंखें खोलकर
अपनी मीठी प्यारी
सपनों से भरी नींद को भुलाकर बस
उसे निहारते रहते हैं
कीचड़ में कंवल खिलता है
दिन के उजाले में उसे
ढूंढने
जंगल में भटकने का
साहस नहीं करते
जीवन का श्रृंगार
त्योहार
रस की फुहार
गलियों में बसता है
उस
घर में बड़े प्यार, मनोयोग
और अपनेपन से बन रहे
खाने की महक
मिट्टी की सौन्धी सौन्धी
कुल्हड़ की खुशबू में डली
चाय में पड़ी इलायची अदरक से
लबरेज
तन को लरजाती
मन को महकाती
बहारों की ताजगी भरी
अपनेपन की चाहत की
सुरमई हवाओं की
लरजती खुशबू
सब यहीं
इन गलियों से आता
है पर
यह तंग गलियां
लोगों की बंद रूहों को
भाती क्यों नहीं।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Loading...