Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Oct 2021 · 2 min read

परिचर्चा (कन्या पूजन का महत्व)

परिचर्चा (कन्या पूजन का महत्व)
विधा:- आलेख
दिनांक:- ८/१०/२०२१
___________________________________________
सनातन संस्कृति एवं वैदिक मान्यताओं के फलस्वरूप नवरात्रि में नवदुर्गा के नव अलग- अलग स्वरूपों का पूजन नव कन्याओं के रूप में किया जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार तीन वर्ष से लेकर नव वर्ष तक की कन्यायें साक्षात माँ अम्बे स्वरूप होती हैं, किवदंती यह भी है कि नवरात्रि के समय जब भगवती पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आती हैं, तो वह इन्हीं कन्याओं में वास करती है, कारण इस उम्र में कन्यायें छल, कपट, द्वेष, इर्ष्या से दूर पवित्रता की प्रतिमूर्ति होती हैं।

नवरात्रि के इन नव दिनों में भक्तगण पूर्ण संयम के साथ नवदुर्गा की उपासना कर उन्हें प्रशन्न करने का प्रयास करते हैं।

नौ कन्याओं के पूजन का महत्व:-
शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।

आज के परिपेक्ष्य में हम कह सकते है, कि कन्या पूजन बस दिखावा मात्र बनकर रह गया है और अपना मूलभूत औचित्य खोता जा रहा है। आये दिन नबालिग से लेकर बालिग हो चूकी कन्याओं के सङ्ग होते दुरव्यवहार एवं भ्रूणहत्या जैसे कुकृत्यों ने समाज की अमानुषिक प्रवृत्ति को नग्ग कर हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है जिसके कारण कन्या पूजन की महत्ता का औचित्य खोखला दिखता है। जिस देश, समाज, धर्म में कन्याओं को साक्षात भगवती का स्वरूप माना गया हो उस देश, काल, समाज में इस तरह के कुकृत्य हृदय में नैराश्य का संचार करते हैं, और हम यह सोचने पर मजबूर होते हैं कि क्या वाकई हम इन्हें नवदुर्गा का प्रतीक मानते हैं?

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

Loading...