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11 Nov 2023 · 1 min read

रेत पर मकान बना ही नही

रेत पर मकान बना ही नही
वो शक्स मेरा बना ही नही ।

उस मुकदमा को जीतते कैसे,
हमारे साथ कोई गवा ही नही ।।

अलग रास्ते से गुजर के आए वो
अलग मौसम का समा लाए वो ।

जिस बीमारी ने घेरा है मुझको,
उस रोग की कोई दबा ही नही ।।

मेरे हक में ऐसी कोई दुआ नहीं
दर्द ए दिल का कोई समा नही ।

उसी की दिल मैं चाहत है जो ,
मेरी जिन्दगी में लिखा ही नही।।

था चलचित्र जिसका दिल में बसा
वह शख्स जहन से गया ही नहीं ।

इस चित्र में लगी थी जिंदगी मेरी
जो चित्र पूरा छपा ही नहीं…..।।

तमाम ए जिंदगी रास्तों मै गई
मिल ना सके हमें मंजिल कोई

ना हकीकतों से थे रूबरू हम
दिल की हसरतों का पता ही नही

✍️कवि दीपक सरल

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