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6 Oct 2021 · 1 min read

नारी

नभ में घुमड़ते हुए उन घने बादलों को
मैंने हमेशा नदियों में सिमटते देखा है,
फूलों सी चंचल इठलाती उस नारी को
कई बार मैंने अंगारों पर सुलगते देखा है,
सृजन करती है जो एक नए जीव का उसे,
मैंने छलकते दर्द में भी मुस्कुराते देखा है,
अपनों के सपने हो सभी पूरे यही चाहत,
उसके सपनों को रेत सा बिखरते देखा है,
समय की चक्की में कई बार पिसती है वो,
जैसे प्रकृति का रूप बदलता है हरपल यहाँ,
उसका भी मैंने नया रूप बदलते देखा है,

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