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21 Sep 2021 · 2 min read

राह यूँ डगमगा जाते

राह यूँ डगमगा जाते करते – करते चहुँओर
यह ओट में क्या छिपा खोज रहा है कौन ?
तम भी कहाँ देती पथ के वों मलिन धूल
शशि भुजङ्ग रन्ध्र में ओझिल तिरती कहाँ किसमें ?

उर भी बोली दामिनी के नभ नग शिखर
ऊँचे – ऊँचे विलीन क्षितिज से दिवा दूत के नहीं
असित में कहाँ छाँव यह भी ओक किसका ?
छवि क्यों नहीं खीचती तड़ित् नीरद अभ्र से ?

लौटती शिखर से पूछ कहाँ जाती प्राची विप्लव ?
यह क्रान्ति उर्ध्वङ्ग उठी कल – कल कहर केतन
घनघोर घन में छायी कौन – सी इन्द्रधनुषीय ?
सतदल सान्ध्य का फिर साँझ के गोधूलि रैन

यह गीत को कौन जानता पूछ रहा है कौन ?
ध्वनि स्वर परिचित नहीं हेर – हेर लौट रहा
भू , अनिल , तोय , तड़ित् मेघ अब कहाँ होती स्पन्दन ?
किञ्चित कौतुक चल – चल दिवस प्रतीर के दोजख़

पारावार तट को न देख वो भी है मँझधार में
तू भी लौट चल स्वयम्भू बन उस धार सरित्
लकीर को देख उन्माद लिए क्षिति को कैसे करती अलङ्कृत ?
बढ़ – बढ़ आँगन के तृण – पिक स्वर बिन्दु राग

धारा की धार में कृपण यह स्वप्न भी है किसका ?
तिमिर घनघोर के समर में कौन है फँसा विस्मित ?
धुँधली दिशाएँ भी ध्रुव – सी मेघदूत भी लाऐगा कौन ?
ओझिल ज्योत्स्ना से भी कहाँ आती वो प्रभा असि – सी ?

कल्पना के बुलबुले में भी खेलता वों कौन रञ्ज किरण ?
कदम – कदम दुसाध्य भरा किन्तु कल – कल तरङ्गित मन
लौट – लौट दरमियान के दहलीज़ कौन – कौन दिवस के पन्थ ?
मैं भी कहाँ , क्यों नहीं देती निशा निमन्त्रण पङ्किल के नयन ?

यह मेघ – मेघ के कुन्तल बिछाता इसमें कौन ख़ग है ?
उड़ – उड़ नभ में तन को कहाँ छिपाती उर में क्यों ?
क्या इन्तकाल हो गया नीड़ भी नहीं जाने वों कौन ?
स्तुति भी कहाँ देती क्षणिक आधि व्याधि की अनुभूति ?

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