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20 Sep 2021 · 1 min read

पारले जी

दरवाज़े की घंटी लगातार बजे जा रही थी….

अरे बाबा खोलती हूॅं ज़रा सब्र करो कहती हुई मिनाक्षी ने गुस्से से दरवाज़ा खोला तो सामने धोबिन खड़ी थी ।

” ये तेरा कौन सा टाइम है आने का ? ”

गुस्सा काहे हो रही हैं भाभी आप ही बताईं की हम शाम को नही आईं त कब आईं ?

तूझे तो पता है ना ये मेरी पूजा का समय होता है…

गैस पर चाय का पानी चढ़ाती हुई मिनाक्षी ने धोबिन से कहा ” तू चाय बना मैं पूजा करके आती हूॅं । ”

चाय बनते-बनते मिनाक्षी आ गई…

अब तू जा बैठ मैं चाय लेकर आती हूॅं , ये कह मिनाक्षी चाय छानकर साथ में कुछ मठरियां और ‘ पारले जी ‘ का एक पैकेट रख बाहर कुर्सी पर बैठ गई ।

धोबिन की तरफ चाय बढ़ाती हुई बोली…ले तुझे चाय के साथ ‘ पारले जी ‘ पसंद है ना ।

” भाभी कुछ खाली डिब्बा मिलेगा ? ”

हां मिलेगा ! पर एक बात बता तू इतने घरों में जाती है सब पैसे वाले हैं लेकिन हर चीज मुझसे ही मांगती है क्यों ?

” काहे की आप हमका बहुत पसंद हैं । ”

” क्यों मैं क्यों पसंद हूॅं तूझे ? मैं तो बहुत डांटती हूॅं ।”

” अईसन है भाभी की ऊं सब लोग मठरी जैसे हैं सखत…बहुत मशक्कत करे के पड़त है । ”

” आप ई ‘ पारले जी ‘ जैसन थोड़ी सखत हैं लेकिन झट मुॅंह मा घुल जात हैं । ”

” ऐही खातिर हमका ‘ पारले जी ‘ बहुत ही पसंद है । ”

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/09/2021 )

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