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16 Sep 2021 · 1 min read

कुछ दोहे और

आरक्षण उसको मिले, जो निर्बल धनहीन।
जाति नहीं बस देखिए, भूख, गरीबी, दीन।

मीठी वाणी बोलकर, घाव करें गंभीर।
बड़े सयाने लोग हैं, देते दुख सह नीर।।

जादूगर दृग आपके, उड़ा गये हैं चैन।
नैन लड़ी जब से पिया, मैं जागूंँ दिन-रैन।।

सावन शिव का माह है, चलो देवघर धाम।
सब संकट पल में टरे, जो लेता शिव नाम।।

सावन मनभावन हुआ, रिमझिम पड़ा फुहार।
बागों में झूला पड़ा, आई आज बहार।।

मैं हूँ सच्चा यार का, बजा रहे थे गाल।
समय हुआ विपरीत तो, बदल गये सुर-ताल।।

मत करना छींताकशी, कभी किसी पर आप।
दुर्बल की हर आह पर, ईश्वर देते श्राप।।

हरपल अपने स्वास्थ्य का, रखना होगा ख्याल।
चिंता मत करिए कभी, खुश रहिए हर हाल।।

सौ गलती शिशुपाल की, प्रभु ने कर दी माफ़।
फिर भी जब माना नहीं, किये उचित इंसाफ।४।

क्षमा करो हे नाथ अब, दया करो इस बार।
भवसागर में नाँव है, तुम्ही उतारो पार।१।

क्षमा करो मातेश्वरी, मैं बालक नादान।
अपनी गल्ती का मुझे, रहा नहीं अब ध्यान।२।

क्षमा करो माँ शारदे, अवगुण मेरे आप।
सुबह-शाम आठो पहर, करूँ तुम्हारा जाप।३।

मोहन की हैं राधिका, राधा के हैं श्याम।
भज लो राधेश्याम को, बन जाएगा काम।

रो-रो कहती राधिका, कब आओगे श्याम।
नैन तुझे देखे बिना, बरस रहे अविराम।।

गोकुल में हैं राधिका, मथुरा में घनश्याम।
विरहन के इस देश में, सावन का क्या काम।।

करता हूँ मैं याचना, दो माँ मुझको ज्ञान।
वैर भाव, छल, दंभ सह, रहे नहीं अभिमान।।

(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
☎️7379598464

Language: Hindi
306 Views

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