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19 Aug 2021 · 1 min read

गंवार

पढे लिखे गंवार है
तभी नहीं गुजार है

दिलों रहे न खोट जब
तभी न लूटमार है

जगह रहे अनेक पर
मिले न रोजगार है

जगह रहे अनेक पर
मिले न रोजगार है

नयन ये बांक है तिरे
दिखे कभी कटार है

ये जिन्दगी तिरे लिए
जो इश्क का करार है

मिटें न आज दूरियाँ
पड़ी रही दरार है

लिहाज मात का करे
हुई न वो उतार है

कमी गजल में ढ़ूढ़ते
बहुत न जानकार है

चले न जिन्दगी मिरी
बसी जो यादगार है

डॉ मधु त्रिवेदी

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