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17 Aug 2021 · 1 min read

मेरे शिव जी (१)।

आओ सुनाऊं एक कहानी ,
मैं हूं अपने शिव कि दीवानी ,
बचपन से जिसे सब कुछ माना ,
लोगो ने उन्हें शिव नाम से जाना ।

कभी पिता ,कभी भाई बनकर
रक्षा वह मेरी करते है ,
रहूं अगर उदास कभी मैं,
बनकर मित्र मुझे हसाते हैं।

अकेले जब बैठा करती हूं,
बातें मैं उनसे किया करती हूं ,
होकर खुश यूहीं उनका द,
धन्यवाद किया करती हूं।

बातें याद आती हैं जब यह ,
भला अपनी को कोई धन्यवाद ,
कहा करते हैं फिर उन्हें मैं,
सॉरी कह दिया करती हूं।

जिस दिन उनका नाम ना लू ,
मन मेरा अशांत हो जाता है ,
लेकर उनका नाम तभी ,
मुझे शांति मिल पाता है।

अगर आते वह कभी सामने मेरे ,
फिर मैं ना कभी उन्हें जाने देती ,
बनूं मैं अपने शिव कि गौरी ,
बस यही है चाहत मेरी।

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