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12 Aug 2021 · 1 min read

सभ्यता

आदि मानव बन्दर ही थे हमारे पूर्वज जिनसे विकसित हो हम मानव बने ।पत्थर से पत्थर घिस आग उत्पन्न की अपनी उपलब्धियाँ हमको अर्पण की । वो आदि सभ्यता कितनी अच्छी थी । आदमखोर इंसान जैसी न नरभक्षी थी ।
संघर्ष वहाँ भी होता था आपस में
पर साथ रहने की संकल्पना सच्ची थी

अब तो हथियार अपनों के लिए ही है छल कपट मारकाट अपनों से ही है. विनाश की लीला रच रहा है इंसान ।
भ्रष्ट हो गया आज तो उसका ईमान ।
सभ्यता को नष्ट करते पल भर में हथियार । हिरोशिमा नागासाकी इनके शिकार है । हो रहा है नंगा खेल हथियारों की भीषणता का । पनप रही है सभ्यता की अज्ञानता ।

स्वच्छंद विचरती थी बहूँ बेटियाँ जहाँ अपनों से ही डरती है आज वो वहाँ मार पिटाई लूट झगडा और कत्लेआम बस यही है सभ्यता के बदले आयाम । अवनि से अम्बर की हमने दूरी मापी । सागर तल की बढ़ती गहराई नापी ।
पर नाप न सके हैवानियत की सीमा । जो करती आजकल दूभर जीना ।
कोरोना के नाम पर अंगों का सौदा । आक्सीजन के नाम पर करोड़ों का सौदा । बस बची है इतनी ही इन्सानियत ।जरा देखिये तो बीमारों की मासूमियत ।करना है जब अपने ही लोगों के लिए ।तो कैसे भी करे अपने लोगों के लिए । इनसे ज्यादा नैतिकता आदिमानव में थी । शिष्टाचार भी परम था आदि मानव में ।

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