Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
7 Aug 2021 · 1 min read

.नदी सी

बहती रही मैं
पहाड़ी नदी की तरह
अपनी ही धुन में
कभी झरना, कभी सागर
कभी तूफानों से टकरायी,
सबने मेरी पहचान मिटाने की
भरपूर कोशिश की—-
कई मोड़ आये,
कई बार सूखी,
पर भीतर की संजीवनी
शक्ति ने हमेशा मेरा साथ दिया,
सूर्य ने सुखाया तो
बारिश ने भर दिया,
तूफानों ने मेरी गति को रोका
तो किनारों ने थाम लिया
मुझे तो बस बहना था,
बहती रही,
उतार चढ़ाव के साथ,
प्रकृति को अपनाते हुए,
हंसते हुए,गुनगुनाते हुए,
सबको अपने अस्तित्व से
परिचय करते हुए|

Loading...