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2 Aug 2021 · 1 min read

नगर दिल का सूना बसाओ कभी तो।

गज़ल
122……122……122…….122

हमारी भी दुनियाँ में, आओ कभी तो।
नगर दिल का सूना, बसाओ कभी तो।

ये गम का अँधेरा मायूसी का आलम,
तुम्हीं गुल खुशी के खिलाओ कभी तो।

नहीं अब सुहाते हैं,…. लैला के किस्से,
कहानी भी अपनी, बनाओ कभी तो।

जमीं पर ये कब तक , पड़े तुम रहोगे,
उठो और फ़लक जगमगाओ कभी तो।

न मांगो किसी से, जो हक है तुम्हारा,
झपट कर के छीनों, बताओ कभी तो।

जला कर तुम्हारी, गये झोपड़ी जो,
महल उनके तुम भी, गिराओ कभी तो।

तुम्हें गर मिला कुछ, खुदा से जियादा,
दुखी दीन को कुछ,खिलाओ कभी तो।

ये गम का लबादा, उतारो भी फ़ेको,
हँसो, दूसरों को, हँसाओ कभी तो।

अगर प्रेम करते हो, प्रेमी से तुम भी,
तो जाओ भी, नज़रें मिलाओ कभी तो।
……✍️ प्रेमी

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