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23 Jul 2021 · 1 min read

बिन बच्चों के स्कूल

बिना बच्चों का स्कूल
जैसे बिन बगिया का फूल
चारों तरफ अजीब सा सन्नाटा पसरा रहता है
मुझे खेलने वाले कहां गए हर एक खिलौना कहता है
स्कूल की घण्टी, बच्चों की राहें तकती रहती है
कब गाऊँगी मैं गीत मेरा रोज ही पूछा करती है
श्यापट्ट और चाॅक पड़े पड़े सब उब गये
डेस्क और बेंच खड़े खड़े कुछ रूठ गये
किताब की वो बच्ची मुझसे पूछा करती है
कब आएगें मेरे दोस्त रस्ता देखा करती है
क्लासरूम की गलियां विरान सी लगती है
न कदमों की आहट न ही कोई शोर
कितनी सुनसान लगती है
या खुदा कब गुजरेगा वबा का दौर,
कब फिजा गुलजार होगी,,
कब दिखेंगे इस आंगन के फूल,
यह बगिया सदाबहार होगी,,

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