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10 Jul 2021 · 4 min read

सुकून का गुल्लक

“डॉक्टर साहब इतनी दवाइयों के बाद भी कोई आराम नहीं है उनको दर्द में …मुझसे देखा नहीं जाता उनका यूँ तड़पना ! मेरा दिल घबरा रहा अब तो! सच- सच बताइए न …मेरे पति, श्रीवास्तव जी ठीक तो हो जाएँगे न “?
(मिसेज़ श्रीवास्तव यानी की शारदा जी ने अपने पति की बिगड़ती हालत पर परेशान हो , डॉक्टर से सीधा सवाल किया।
उनके साथ उनका चौबीस वर्षीय बेटा विनय भी खड़ा था )

“देखिए मैडम ये पैनक्रियाटिक कैंसर है ..वो भी स्टेज तीन पर पता चला है। पर फिर भी हम पूरी कोशिश कर रहे हैं । भगवान पर भरोसा रखिए। सारा इलाज क़ायदे से हो और दवाई नियम से लिया, तो ज़रूर ठीक हो जाएँगे।बहुत लोग ठीक हुए हैं ।
हाँ! उम्र ज़रूर कारण है, उनके स्लो ट्रीटमेंट रिस्पॉन्स का, पर हम सब मिलकर लड़ेंगे, ठीक न”?
(डॉक्टर ने तकल्लुफ़ भरी मुस्कान में लपेट आश्वासन दिया और चले गए !
शारदा जी वहीं बाहर बेंच पर रोते- रोते बैठ गईं। बेटे विनय ने उनके काँधे पर हाथ रख ढाढ़स बँधाने की कोशिश की …)

(शारदा जी और डॉक्टर की दरवाज़े पर की बात, शारदा जी के पति, दिनेश जी ने अस्पताल के बेड पर से ही, सुन ली थी ! अभी-अभी कीमो ट्रीटमेंट से, बहुत कमजोर भी महसूस कर रहे थे वो।
सुनते ही वो बहुत बेचैन हो उठे और बेड के सिरहाने का सहारा ले, उठकर बैठ गए…
(उम्र की बात सुन डॉक्टर की, वो सोच में डूब गए )
” उम्र ! ……उम्र चौवन वर्ष ! …पता ही नहीं चला कब जवानी ने बुढ़ापे की दहलीज़ पार कर ली!
सारी ज़िंदगी तो कमाने खाने में ही निकल गई …हर चीज अब तक प्लान से चल रही थी! पर ये बीमारी तो अनप्लानड ही आ गई!

हाँ …पर आज इस बात का बहुत सुकून है कि छोटी सौम्या बिटिया की शादी, पिछले साल ही हो गई और अब वो लंदन में सैटल है! पर विनय …”

(उनकी सोच की तंद्रा को तोड़ते हुए शारदा जी ने कमरे में आते ही कहा)
” अरे! कुछ चाहिए था क्या ? आवाज़ देते न ! यूँ खुद क्यों उठे??” चलिए घर चलें ..डॉकटर ने इजाजत दे दी है।

(प्रचंड फैले कोरोना ने डॉक्टरों को परेशान कर रखा था! सो कोरोना से बचाव के लिए, दिनेश जी को बस कीमो और कंसलटंसी के लिए अस्पताल बुलाया जाता था, बाक़ी समय घर पर ही रहने की डॉक्टर ने हिदायत दी थी !)

घर पर दिनेश जी कोशिश करते कि माहौल बोझिल न हो ..सो हँसी मज़ाक़ करते रहते थे !
वो अक्सर अपनी दवाइयों को खाने का ज़िम्मा खुद ही उठाते, हाँ शारदा जी उन्हें याद ज़रूर दिलाती रहती थी!

पर धीरे धीरे अब वे बिलकुल पड़ गए थे ! अकसर दर्द में कराहते …
शारदा जी और विनय हर समय उनके आस पास रहते …डॉक्टर ने भी अब तो जवाब दे दिया था !

एक दिन शारदा जी को कुछ छुट्टे पैसे चाहिए थे, विनय भी काम से बाहर निकला था …कुछ सूझा नहीं तो दिनेश जी के बेड के बग़ल, टेबल पर रखे बड़े से गुल्लक को पलट कर उसमें से सिक्के निकालने की कोशिश करने लगी! ये गुल्लक बच्चों का नहीं, दिनेश जी का अपना था ! वो अक्सर जो भी बचा पाते, इस में डाल देते ! कहते कि ये मेरे सुकून की बचत है …इससे मैं सुकून ख़रीदूँगा !
मिट्टी के गुल्लक को पलट कर सिक्के गिराने की जद्दोजहद में गुल्लक झन्न से ज़मीन पर गिर गया और रूपयों, सिक्कों संग, कई टैबलेट, पचकी कैप्सूल ज़मीन पर बिखर गई! शारदा जी अवाक देखती रह गईं!

आवाज़ सुन दिनेश जी की नींद टूट गई …
दोनों एक दूसरे को एकटक देखने लगे !

“ये तो आपकी दवाइयाँ हैं…आपने ये सारी दवाइयाँ क्यों नहीं खाई??…कब से नहीं खा रहे दवाइयाँ? और मैं क़िस्मत को , डॉक्टर को कोस रही थी…क्यों ? अरे बोलिए न क्यों ??”

(और शारदा जी के चेहरे पर ग़ुस्सा, आँसु, के संग कई भाव, एक साथ उमड़ आए!)

(दिनेश जी ने कुछ हाँफते हुए कहा )
” अरे तुम रो क्यों रही हो ? मैं न कहता था कि ये मेरा सुकून का गुल्लक है !
विनय की नौकरी कोरोना के चलते लगी ही नहीं ..बेचारा एम. कॉम करके दर- दर नौकरी ढूँढ रहा । अगर मेरे नौकरी के रहते, मैं चल बसा तो, अनुकम्पा नियुक्ति के तहत उसे मेरे ऑफिस, आयकर भवन में नौकरी मिल जाएगी! मैंने सब पता कर लिया है और पेपर तैयार करके मेरे लॉकर में रख दिया है ! घर में दूसरा कोई कमाने वाला भी तो नहीं है ! सो ये उसके हक में काम करेगा !वैसे भी वो बेचारा, घीरे-धीरे अवसाद का शिकार हो रहा है ।
वैसे पता नहीं नौकरी कब तक मिले उसे, ये कोरोना जाने कब तक रहे !

उपर से सौम्या की शादी के खर्च से अभी हम उबरे भी नहीं और बची कुची जमा पूँजी मुझ पर ख़त्म हो रही ।
फिर क्या गारंटी कि मैं बच ही जाऊँगा ??या दोबारा ये बीमारी दस्तक न देगी ? और सिर्फ छ साल की नौकरी रह गई है ..वो भी पता नही ये बीमारी करने देगी कि नहीं …सो …”

(शारदा जी ने बीच में ही उनकी बात काटते हुए कहा )
” ये क्या किया आपने ? जानबूझकर दवाइयाँ नहीं खाईं?? ये तो ख़ुदकुशी है!
मेरे बारे में एक बार भी नहीं सोचा ??”
(शारदा जी के आँसु थम ही नहीं रहे थे ! )

” बस तुम्हारा और विनय का ही तो ख़्याल आता रहा रात दिन .. इससे ज़्यादा कुछ सूझा ही नहीं…कि कैसे विनय का भविष्य महफ़ूज़ करूँ”।

ये बिन खाए टैबलटस, ये कैपसूल, ये गुल्लक… मेरे सुकून की गैरंटी हैं …कि मेरे बेटे का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा..और तुम्हे तो वो कितना चाहता है, सो तुम्हारा खयाल तो रखेगा ही…!

सुनो! ये सुकून का गुल्लक हमारा टॉप सिक्रेट रहेगा …रहेगा न शारदा ??

-सर्वाधिकार सुर्क्षित -पूनम झा ( महवश)

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